हम सभी जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की रात्रि के जब 7 मुहूर्त निकल गए और 8वां मुहूर्त उपस्थित हुआ, तभी आधी रात 12 बजे के समय सबसे शुभ लग्न में देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने विष्णु के 8वें अवतार के रूप में जन्म लिया था। उस समय लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। उस समय रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि थी। कुछ विद्वानों के अनुसार उस समय बुधवार का दिन एवं हर्षण नाम का योग भी था।
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद पं अनिल कुमार पाण्डेय का कहना है कि इस बार कृष्ण जन्माष्टमी 6 सितंबर को पड़ रही है। 6 सितंबर को पुष्पांजलि पंचांग के अनुसार बुधवार 6 सितंबर को अष्टमी तिथि दिन के 3:45 बजे से प्रारंभ हो रही है, जो अगले दिन गुरुवार 7 सितंबर को 4:20 बजे दोपहर तक रहेगी। जन्माष्टमी क्योंकि रात का त्यौहार है, इसलिए 6 सितंबर और 7 सितंबर के बीच में रात्रि के 12 बजे जब भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी रहेगी, तब जन्माष्टमी का त्यौहार मनाना उचित रहेगा।
पं अनिल कुमार पाण्डेय ने बताया कि 6 सितंबर की रात के 12 बजे भगवान के जन्म लेने के समय रोहिणी नक्षत्र रहेगा भी रहेगा। रोहिणी नक्षत्र इस बार बुधवार 6 सितंबर को दिन के 9:24 बजे से प्रारंभ होकर गुरुवार 7 सितंबर को दिन के 10:28 बजे तक रहेगा। चंद्र देव वृष राशि में रहेंगे और पंचांग के अनुसार उस समय हर्षण योग तथा सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। यह सुखद और अद्भुत संयोग है कि इस बार 6 सितंबर को रात्रि के 12 बजे भगवान के जन्म के समय एवं तिथिवार नक्षत्र योग सभी कुछ बिल्कुल वैसा ही है जैसा की द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय में था।
जैसा कि हिंदू धर्म में सदैव होता है कि गृहस्थ के त्यौहार के अगले दिन साधु संतों का त्यौहार होता है। इसी कड़ी में इस बार भी जन्माष्टमी का व्रत गृहस्थ को 6 सितंबर को रखना है और साधु संतों की जन्माष्टमी 7 सितंबर को होगी। दही हांडी का कार्यक्रम भी 7 सितंबर को ही रखा जाएगा। जन्माष्टमी की पूजा रात्रि 12 बजे से तीन मिनट पहले प्रारंभ की जानी चाहिए और इसका अंत 12:42 बजे कर देना चाहिए।
व्रत के उपरांत पारण का भी विधान होता है। कुछ लोग व्रत का पारण पूजा समाप्त होने के तत्काल बाद करते हैं। जो लोग 6 सितंबर को पूरे दिन व्रत रहेंगे उनके लिए यह उचित है। इसके अलावा कुछ स्थानों पर व्रत का पारण सूर्य के उदय के होने के बाद किया जाता है, वे लोग प्रातःकाल 6:08 बजे के बाद पारण कर सकते हैं। जो लोग पूरी अष्टमी का व्रत रखते हैं उनको यह व्रत 6 तारीख को 3:45 बजे से अगले दिन सूर्य के अवसान होने तक अर्थात सायंकाल 6:29 बजे तक व्रत रखना चाहिए।