जिन्दगी क्या है: पूजा

नहीं कोई परवाह यदि तुम हमें ना समझो।
अपनी मुश्किलों को खुद ही सुलझा लेंगे हम।।

जिन्दगी क्या है? इसका ना कोई चेहरा है, ना शक्ल और ना कोई तस्वीर। यह तो बस एक सुखद अहसास है, एक अमूल्य विश्वास है। इस जिन्दगी में अपनी पहचान बनाना मुश्किल तो है पर नामुमकिन नहीं।

वह जीवन भी क्या जीवन है जिसमे हादसे ना हों। जीवन मे प्यार होना भी जरूरी है, किन्तु जीवन मे प्यार सभी को नहीं मिलता। यह खुदा की दी नियामत है, एक इबादत है। बहुत ख़ुशक़िस्मत हैँ वो जिन्हें इसका अनुभव होता है। परन्तु कभी किसी के ना होने पर जीवन समाप्त नहीं हो जाता।

समय की धारा अपने तीव्र प्रवाह मे चलती रहती है, जीवन तो ज्यों का त्यों चलता ही रहता है। जीवन एक संगम है, सम्मिश्रण है सुखों और दुखों का। दुखों व उलझनों का निडर होकर सामना करना चाहिए। जीवन कभी भी इतना तनाह नहीं रहता जितना हम उसे बना देते हैं।

अतीत को बिसरा वर्तमान से समझौता करने मे ही समझदारी है।
कभी-कभी इंसान की जिन्दगी में दुखों की वजह से एक भूचाल सा आ जाता है, ज़ब इंसान खुद को तनाह पाता है।

अनजाने दुखों की वजह से वह स्वयं को इतना अकेला महसूस करता है जैसे उसके जीवन में सबकुछ समाप्त हो गया हो। इस अकेलेपन में इंसा जाए भी तो कहाँ जाए, करे भी तो क्या करे? हमें दुनिया का कोई अनुभव भी तो नहीं होता।

जब जीवन भर बीतती है तभी अनुभव होता है और पता चलता है की हमारा कुछ खो सा गया है, जिंदगी में से कुछ कम होने पर किसी चीज के अलग होने पर स्थिति भी अस्तित्वहीन हो जाती है। पर इस दुःख त्रासदी पर किसी का वश तो नहीं। हादसों के बावजूद जीवन क्रम येन-केन चलता ही रहता है।

अतः दुखों से यथाशीघ्र उभरकर सामान्य होना ही श्रेस्कर है। हर व्यक्ति को अपने दायित्वों को कुशलतापूर्वक निभाना चाहिए। परिवार जनो की भावनाओं की कद्र करते हुए, उन्हें ठेस ना पहुंचते हुए समझदारी, विनम्रता व धैर्य के साथ अपनी जिम्मेदारियों को स्वीकार करें और जिन्दगी पर विश्वास करें और खुल कर जीएं।

पूजा