आज जहाँ भारत अपनी नई शिक्षा नीति लागू करने का द्रढ़ निश्च्य कर चुका है, जिसमे हर प्रकार की शिक्षा (सांस्कृतिक या फिर भाषायी) सब को क्रियान्वित किया जाना तय किया है।जिसके लिए सरकार ने अपने मानव संसाधन विभाग का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है।

ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार का स्कूलों पर ताले लगाने की प्रकिया सर्वथा अनुचित नजर आती है। सरकार का इन स्कूलों पर ताला लगाने का कारण विद्यार्थियों का अभाव बताया गया है, जिस कारण इन स्कूलों को बड़े स्कूलों में विलीन किया जाएगा।

ठीक है हम शासन-प्रशासन की विलीनीकरण की बात से सहमत हो सकते है, पर कभी शासन-प्रशासन ने कभी इस बात को जाना आखिर छात्रों की संख्या कम क्यों हुई, नहीं कभी भी नहीं। उन्होंने उस बात पर कभी गौर ही नहीं किया कि छात्रों का कम होना, उनकी व्यवस्था का अभाव रहा है।

स्कूलों में ताला लगने की वजह सिर्फ विद्यार्थी नहीं है। आपने कब उन छात्रों को वह सुविधाएं दी, जो उनके लिए होना चाहिए थी। इन स्कूलों की ताला बंदी के पूर्ण जिम्मेदार छात्र नहीं हो सकते, कहीं न कहीं हमारा तंत्र भी रहा है।

कभी आपने देखा है कि किन हालातों में स्कूल रहा है? उसकी बिल्डिंग पर छत है? चलिये छत न सही, उसकी अपनी बिल्डिंग है? छोड़िए चलने को तो कुछ स्कूल खुले आसमान में भी चल रहे हैं।

स्कूल तो बिल्डिंग के अभाव में लग सकता है, परन्तु शिक्षक की अनुपस्थिति में ना तो बिल्डिंग और ना ही विद्यार्थियों के आने का कोई महत्व रह जाता है। हर बार आप विद्यार्थियों की कमी का बहाना नहीं कर सकते हैं। कभी आपने अपने संसाधनों को परखा या उन संसाधनों का उपयोग बढ़ाया है।

जितने विद्यालय छात्रों की कमी के कारण बंद हो रहे है, उतना ही जिम्मेदार आपका तंत्र भी रहा है। स्कूलों पर तालाबंदी आपकी विफलता का प्रतीक नजर आता है। शासन-प्रशासन के संचालन पर भी सवाल खड़ा होता है, यह स्कूलों की तालाबंदी नहीं बल्कि सरकार और तंत्र की असफलता को पर्दा करने वाली तालाबंदी है।

मनु शर्मा,
अशोकनगर,
मध्य प्रदेश