आकाश में भटकने के लिए- अनुप्रिया

गहबर लीपती
गोसाईं के द्वार खटखटाती
बरगद की देह में
अपनी इच्छाओं के धागे बाँधती
देवता ,पितर अगोरती
गौरी पूजती स्त्रियों
सुनो!
अबकि पूजना तो
अपनी देह पूजना
अगोरना स्वयं को
खटखटाना तो अपने भीतर सोये
अपने आप को जगाना
और कहना
खोल आए सारे धागे
बरगद की देह से
और
मुक्त कर देना हर इच्छाओं को
गहरे नीले आकाश में भटकने के लिए

-अनुप्रिया