हाल-ए-दिल तू ज़रा सुन अब छुपाना कैसा
ये मुहब्बत है, मुहब्बत में आज़माना कैसा
टूट कर सीखा है ज़माने से दिल लगाना मैंने
हारकर सीखा है ख़ुद ग़ैरों को जिताना कैसा
तुम तो कहते हो सुकून है क्या तुम्हें याद नहीं?
आँख में आँसू भरें हो तो मुस्कुराना कैसा
तेरी तस्वीर को अब ज़ेहन में उतार रक्खा हूँ
हर रोज तेरी सूरत पर आँखें दुखाना कैसा
तेरी मर्ज़ी और वो सरहदें ख़ैर कुछ भी तो नहीं
वक़्त तो दे क़रीब तो आ यूँ तड़पाना कैसा
तेरा ये साथ जुदाई से कम नहीं लगता मुझको
रहूँ तन्हा बेकरार तो ये साथ निभाना कैसा
ऐ दोस्त! सुन कहीं तू पत्थर दिल तो नहीं
वक्त कम है और पत्थरों को समझाना कैसा
तेरी खामोशियाँ ही ले डूबेगी पता है ‘रकमिश’
ये तो शरारत है बेशक़, ये दिल लगाना कैसा
-रकमिश सुल्तानपुरी