आज अरसों बाद कोयल कुहू-कुहू बोलने लगी
कानों में मीठा रस घोल मुझसे कुछ कहने लगी
आज तू इंसान अंदर, मैं बाहर रहने लगी
कल जो मेरे छांव के आशियाने थे
तूने काट अपने बना डाले
आज तू उन्हीं में कैद और
मैं खुले आसमान में उड़ने लगी
अब ना फैक्ट्री का धुआं है
ना मोटर गाड़ी का शोर है
आज सड़कों पर घूम रहा मोर है
आज पशु पक्षी का शोर और इंसान मौन है
आज मैं आजाद और तू पिंजरे में कैद है
आज मिट्टी के इंसान की पोल खुलने लगी
शांत बैठा है आदमी और कोयल बोलने लगी
कानों में मीठा रस घोल, सच कहने लगी
आज कोयल फिर कुहू-कुहू बोलने लगी
-शैली अग्रवाल