आंसुओं पे शब्द का सिंगार करके आ गए ।
आँख का सारा नमक अशआर करके आ गए ।।
आज अपने आप को देखा तो नज़रें झुक गईं
आईने का बस ज़रा आभार करके आ गए ।।
हो गए हैं इक यकीनो-दिल के टुकड़े सैंकड़ों
प्यार में कितना बड़ा व्यापार करके आ गए ।।
जीभ बेक़ाबू हुए जैसे मिली गुस्से की शह
शब्द पहले फ़ूल थे अंगार करके आ गए ।।
पा लिये सारे ज़हीनों ने ख़ुशामद से ख़िताब
एक हम नादान जो इंकार करके आ गए ।।
बेपनाह नफ़रत लिये दुश्मन खड़ा था राह में
मुस्कुराहट से उसे हम प्यार करके आ गए ।।
प्यार लेकर इक दिया लड़ने गया है उस जगह
सैकड़ों “सूरज” जहां से हार करके आ गए ।।
-सूरज राय सूरज