इतने दिनों के बाद
आज तुम घर पर आये
अब फैली है मुस्कान
कितने इंतजार के बाद खिले
दरवाजे पर फूल
महक उठे
आँगन में आकर
कल होली खेलेंगे हम सब
उसी नदी के किसी किनारे
खूब उड़े हैं रंग अबीर
तुमने देखा आज शाम को
पीपल का पेड़ अकेला
पास बुलाता
यह पूर्णिमा की धवल रात्रि है
देर रात तक सब जगे रहेंगे
-राजीव कुमार झा