कभी लक्ष्य है और
कभी मंजिल है
कभी मझधार है और
कभी साहिल है
कभी बचपन है
बचपन के खेल है’
मारपीट है
दौड़–भाग, हार और जीत है
कभी जवानी है
जवानी की लहरों में
उठता अँधेरों में दीप है
आसमां छूने की कोशिश
सबकुछ पाने की कोशिश है
यहाँ भी
दौड़–भाग है
खोना–पाना
सफलता और असफलता के बीच
जीवन है
हर बार ‘और’
इस और के पीछे
भागता है इंसान
सब हासिल है
अब और क्या करे
बुढ़ापा है
और एक नया मुकाम है
रिश्तेदार–रिश्तेदारी है,
भाग–दौड़ के बाद
जीवन के नए आयाम की खोज है
जीवन रहते
हर कण–कण में
इसी ‘और’ की तलाश है
इसी और के पीछे
भागता–दौड़ता
उठता–गिरता
हर महफील
हर शाम है
व्यस्त है, हर कुछ स्वयं में
हर किसी को ‘और’ की तलाश है
-रजनी शाह