खुशी पिता को होती है
जब जन्म पुत्र का होता है
बेटे को महान बनाने की,
अभिलाषा लेकर जीता है
नाना प्रकार की मांगो को,
ला कर बेटे को देता है
कभी घोडा बन, कभी गोद उठा
सारा दिन घुमा करता है
अच्छी शिक्षा, दीक्षा की खातिर,
सह कष्ट भी उसे पढ़ता है
तब धन्य पिता हो जाता है,
जब बेटा नाम कमाता है
जन्म अजय के होते ही,
आनन्द हर्ष में ड़ूबा था,
अजय से आदित्य बन बैठा,
यह किस्सा बढा अजूबा था,
‘नाथ’ ‘गोरख’ के आंगन में,
ऐसे योगी का डेरा था
राष्ट्र धर्म के आगे उसने,
पितदेह विसर्जन छोड दिया,
धन्य ऐसी माँ कोख को है,
ज़िसने ये बालक जन्म दिया
-वीरेन्द्र तोमर