सुचंचला सुकोमला सुमंगला अहो प्रिये
सुप्रीत रीत की कथा सुकंठ से कहो प्रिये
अघोर घोर रात्रि में सुज्ञान ही विहान है
डटे रहो सुवृत्ति से मनुष्य प्राणवान है
सुनो! सदा नदी बनो सुताल में बहो प्रिये
सुप्रीत रीत की कथा सुकंठ से कहो प्रिये
पुनीत पंथ प्रीत से महान है वसुंधरा
नये प्रभात से सजे सदा यही परम्परा
यही यथेष्ठ सूत्र ले सुभाव को गहो प्रिये
सुप्रीत रीत की कथा सुकंठ से कहो प्रिये
सदैव ध्यान ये रहे कि वेदना न लोप हो
सुरिद्धि सिद्धि चाह में विशुद्धता न गोप हो
कुबुद्धि लोभ से सदा सुदूर ही रहो प्रिये
सुप्रीत रीत की कथा सुकंठ से कहो प्रिये
-श्वेता राय