पता है तुम्हें उसने क्या कर दिया है
किसी को किसी से जुदा कर दिया है
जो नज़रें मिलाने के क़ाबिल नहीं था
उसे मेरे दिल में ख़ुदा कर दिया है
कहीं भी अंधेरा मिलेगा न तुम
हवा को चमकती हवा कर दिया है
सलीका बहुत था हमारे भी अंदर
ज़माने ने हमको बुरा कर दिया है
जलन बन गई थी किसी की मुहब्बत
उसी आग में सब फ़ना कर दिया है
सुना है कि नफ़रत, मुहब्बत करेगी
उसे भी किसी ने फ़िदा कर दिया है
मुझे ढूंढना है तो ख़्वाबों में जाओ
तसव्वुर को अपना पता कर दिया है
दिया था मुझे ज़हर जो मारने को
किसी की दुआ ने दवा कर दिया है
मुक़द्दर सभी को दग़ा दे रहा है
मुक़द्दर को किसने खफ़ा कर दिया है
-पुष्पेंद्र सिंह ‘उन्मुक्त’
नर्रऊ, विजयगढ़,
अलीगढ़ (202139)
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