किस्तों में जो यूँ
मुझे रोज सजा देते हो
अंखियों को फिर क्यों
समन्दर का नाम देते हो
मत कर इतना सितम
ओ सितमगर,
तिल तिल कर रोज़
मेरी क्यों जान लेते हो,
मोहब्बत होता गर ग़ुनाह
नहीँ होते
कृष्ण और राधा भी भगवान
तुम कहो गर,
तो मैं बनकर मीरा
ख़ुद को सारे जग बदनाम करतीं हूँ
क़िस्तों में जो यूँ
मुझे रोज सजा देते हो
अंखियों को फ़िर क्यों
समन्दर का नाम देते हो।
-पिंकी दुबे