कौन कहता है कि हर हाल में कहना बेहतर
वक्त जब ठीक नहीं मौन ही रहना बेहतर
पीठ आंधी की तरफ करके जो मुंह की खायी
सीना आंधी की तरफ करके है बहना बेहतर
जबकि लोगों के लिए घर भी मयस्सर ही नहीं
खाली भवनों का यहाँ आज है ढहना बेहतर
चमचमाते हुए जेवर से मुझे क्या लेना
मन को भा जाये वो व्यवहार का गहना बेहतर
जिसकी चर्चा ही हमें और रुला देती है
ऐसे हर दर्द को चुपचाप है सहना बेहतर
-डाॅ भावना