खबर उड़ी है आज
भेड़िए के
फिर आने की
घर घर में
अफरा तफरी है
जान बचाने की !
धीमी पड़ी रोशनी
जलती हुई
मशालों की
रात-रात भर
जाग रही
बस्ती संथालों की,
हिम्मत नहीं
किसी की आपस में
बतियाने की !
रह रह करके
यहां शिकारी
कुत्ते भौंक रहे
अपनी ही
हल्की आहट पर
सारे चौंक रहे ,
चिंता सबको
अपने-अपने
ठौर ठिकाने की
नाकेबंदी
मिल जुल कर
कुछ करो इलाके की
अब जल्दी तैयारी
करनी होगी
हांके की,
घड़ी नहीं है
यह संशय की
रोने गाने की
-रविशंकर पांडेय