मृत्युशैय्या पर है शेष नहीं कुछ स्मृतियाँ लौटाने को
एक तुम्हीं खड़े थे जीवन की अनुभूतियाँ लौटाने को
खुले हाथ की रेखाएं देखी रीढ़विहीन पशुवत जीवन
और यदि कहूँ मैं तुमसे मृदुलतम रागनियाँ लौटने को
कह पाओगे कितने क्षण तुम व्यर्थ संसारी जीवन था
लिपट अमरबेल की लता बनी वन-वीथियाँ भरमाने को
पँचशूल ह्रदय भेदता प्रेम पुनीत प्रांजल परिमाण वही
देखा चक्षु पटल खोल खड़े तुम कुरीतियाँ अपनाने को
आ अब लौट चलें प्रियवर दिग-दिगन्त अधिशेष नहीं
इक्षा-अनिक्षाओं का मोह त्याग परिस्थियाँ बतलाने को
-चन्द्र विजय प्रसाद चन्दन
देवघर, झारखण्ड