हैं लज़्ज़त-ए-हयात तो कुछ तल्ख़ियाँ भी हैं
हँसने के साथ-साथ यहाँ सिसकियाँ भी हैं
कहते हैं लोग तुझको गुल-ए-बदनसीब भी
सुनती हूँ जुस्तज़ू में तेरी तितलियाँ भी हैं
आँखों के रास्ते से निकलते हैं रंज़-ओ-ग़म
अच्छा है इस मकान में कुछ खिड़कियाँ भी हैं
तूफान भी शबाब पे आने लगा उधर
बेताब डूबने को इधर कश्तियाँ भी हैं
छेड़ा न कीजिए मुझे मैं ऐसी शम’आ हूँ
दामन बचा के जिससे चली आँधियाँ भी हैं
आतिश फ़िशां से दूर रहा कर ज़रा सुमन
सूरज के पास देख कहीं बस्तियाँ भी हैं
-सुमन ढींगरा दुग्गल
परिचय-
नाम- सुमन ढींगरा दुग्गल
जन्मस्थान- पंजाब, सुल्तानपुर लोदी, कपूरथला
निवास स्थान- इलाहाबाद
मनपसंद विधा- ग़ज़ल, कता नज़्म, छंद मुक्त व छंदबद्ध कविताएँ व गीत, भजन।
भाषा- हिन्दी, अंग्रेज़ी, पंजाबी में सृजन। कई सांझा संकलन में ग़ज़लें शामिल हैं। ग़ुंचे नामक एकल ग़ज़ल संग्रह प्रकाशाधीन है।
सम्मान- 2019 में सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान प्राप्त किया। 2018 में गुफ़्तगू द्वारा कैफ़ी आज़मी सम्मान से सम्मानित। अनुराधा प्रकाशन द्वारा साहित्य गौरव व साहित्य श्री तथा काव्य रत्न सम्मान। प्रतिभा मंच द्वारा साहित्य गौरव व साहित्य रत्न सम्मान प्राप्त हुआ। चंडीगढ़ रीडर्स एन्ड राईट्रस द्वारा सम्मानित। विभिन्न प्रत्र पत्रिकाओं से सम्मान व प्रशस्ति पत्र प्राप्त हुए हैं।।