कुदरत के है खेल निराले
वात्सल्य से हर जीव को पाले
अतिक्रमण करने चलोगे जब जब
तब पाँव में पड़ जायेंगें छाले
अगर बोये हैं पेड़ बबूल के तो
फिर आम कहाँ से खायेंगे
जैसे कर्म करेंगे हम सब
वैसे ही तो फल पायेंगे
कर्म की महिमा गीता में भी
बता रहे श्री कृष्ण सुदर्शन धारी
जैसी करनी है वैसी भरनी
कालांतर में सत्य यही पड़ता भारी
-लीना खेरिया
अहमदाबाद, गुजरात