सुनो!
तुम्हें पता है
कि सौभाग्यशालिनी
होती हैं कुछ नदियाँ
जिनमें स्वयं उतरता है सागर
उनकी प्यास बुझाने
पर भाग्यहीन भी होती हैं
कुछ नदियाँ
जो सागर के किनारे छूकर
लौट आती हैं
जनम भर की प्यास लिये
जनम जनम तक।
बोलो होती हैं न
कुछ नदियाँ
मुझ जैसी
जिनके भाग में
नहीं होता सागर से मिलन
एक अंतहीन प्यास
होंठो पर लिये
वे समा जाती हैं
कालचक्र की मरूभूमि में।
सुन रहे हो न तुम…
-रचना शास्त्री