“तुम क्या हो मेरे लिए”
तूम अतुलनीय हो
गुढ़ अर्थगार्भित भरा तुममें
अकथ्य बन चुके अब तो
तभी मैं नहीं समझ पाई!
तुम अनुपम हो
सदा अपठ्य रहे मेरे लिए
मैं शब्दों वर्णन नहीं कर सकती!
तुम असीम हो
तुम आओगे वापस
मैं अब अप्रत्याशित हो चुकी हूँ!
तुम अनासक्त हो
अंतर्यामी हो मेरे तन मन के
देव ना होकर भी देवतुल्य हो
इसलिए आज भी मेरे अजीज हो!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार