दीपों को और जलना होगा
पथिक अभी और चलना होगा
चांद पर पहुंचे पहुंच गए मंगल पर
सूरज पर चढ़ने को सूरज को
ढ़लना होगा
पथिक अभी कुछ और पग चलना होगा
छा गई जो दुःख की बदली
वसुधैव कुटुंबकम् के गांव में
कहां कहां पग धरें कहां कहां ठांव रे
दिख रहा है हर तरफ डूब रही
नाव रे
पथिक अभी कुछ दूर कुछ पग
और अभी चलना होगा।
आओ कंधे से कंधा मिलाएं
या फिर किसी कंधे पर चढ़ जाएं
भूख सामने खड़ी किया पीएं किया खाएं
दुःख के गीत गुणगुनाएं
हर तरफ कोलाहल है
सौहार्द का अभाव रे
पथिक कुछ दूर और अभी चलना होगा
समस्याओं से जूझते चलते हुए गिरते हुए
लड़ते हुए जीते हुए मरते हुए
चाहे जैसे भी हो दुःख से पार पाना होगा
पथिक अभी कुछ दूर और चलना होगा
समस्याओं के पांव नहीं होते अनायास ही
उग आते हैं आते ऐसे हैं जैसे महाकाल हो
घबराएं न धीरज धरें धैर्य रखें मुस्कुराएं
विपदाएं आती है जाती है
मानव सभ्यता की सबसे बड़ी थाती है
दुःख है आओ क्रांति के बीज बोए
चलते रहे चलते रहे मंजिल अभी दूर है
विपदा भरपूर है
पथिक अभी कुछ दूर और चलना होगा
-भुवनेश्वर चौरसिया ‘भुनेश’
सी/ऑफ हर्षित शर्मा
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