आओ फिर से नयी शुरुआत करें
कहीं दूर चल कर दिल की बात करें
सोचा था कर दूंगा आफताब के टुकड़े
बुझे हुए चिराग से चलो मुलाकात करें
अरमां और यकीन की इन लाशों पर
बेवज़ह बार-बार क्यों अश्रुपात करें
क्या हार कर जीना छोड़ दें हम भी
चलो इनसे भी दो-दो हाथ करें
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बसंत भर यौवन भार
बन कमनीय सुकुमार
सेमल शिरीष कचनार
उल्लसितत्रिविध बयार
तो रण बने आम्र बौर
फूले कदम्ब ठौर ठौर
मनोहर प्रकृति-पौर
सुवासित मालती- झौर
कोयल करे मंगलचार
प्रकृति लेकर पुष्पहार
मधुप कर कर के गुंजार
करते प्रगट नित आभार
– डॉ अनिल कुमार उपाध्याय