आसमान बरसा रहा है प्रेम
खिलखिला रही है दूब
खोल पट मिट्टी का
सुनो!
मेरे रूठे प्रेमी!
तुम भी बढ़ाओ
तपिश अपने प्रेम की
कि शिशिर से सुसुप्त पड़ा हमारा साथ
बौरा उठे आम पर
चूने लगे महुआ से
खिल जाये चटक पलाश सा
और दे जाय मदमस्त उभार गेहूं की बालियों को
कि बहने लगे
बनके जीवन धारा
बसंत हमारे नस नस में…
-श्वेता राय