बेटी- राजेन्द्र प्रसाद

[1]
जाना था जिसको अभी, पढ़ने को स्कूल
उड़ा रही है गेह की, बेटी देखो धूल

[2]
जब घर में होती कभी, उसकी माँ बीमार
चूल्हे चौके का सभी, सुता उठाती भार

[3]
जिनके पैसो से किया, बेटे ने है ठाट
अन्त समय देते उन्हें, बात-बात पर डाँट

[4]
बेटी के भी वास्ते, सहिए कष्ट हजार
पढ़ा लिखा कर कीजिए, इनको भी तैयार

-राजेन्द्र प्रसाद