सुर गीत तुम्हीं संगीत तुम्हीं
अनुभूति तुम्हीं अंतर्मन की
कर बैठे हम जीवन अर्पण
मधुमायी प्रीत समर्पण की
भोर हुयी शीतल वितान है
रश्मि भरा मंजुल विहान है
जारी रखिये निज उड़ान को
मुग्ध रहो चंचल विवान है
मुस्कायी जब निश्छल चितवन
तब जीत हुयी मन दर्पण की
मधुमायी प्रीत समर्पण की
एक उदासी बैठ गयी है
एकल मन के वृंदावन में
फूल पलास खिले डाली पर
आग दिखे पूरे कानन में
जिससे राहत मिलती अविचल
वो ज्योति तुम्हीं आकर्षण की
मधुमायी प्रीत समर्पण की
सूखा सा तालाब पड़ा है
मीत हृदय का आब उड़ा है
कैसे प्यास बुझाये कोई
कंठ तृषा से तन जकड़ा है
हीरक जैसी ओस तुहिन से
रात पयोदित है कुछ क्षण की
मधुमायी प्रीत समर्पण की
-डॉ उमेश कुमार राठी