ओझल सपनों का बोझ लिये
मन बंजारा व्याकुल डोले
बौर नहीं आया अमवा पर
इत उत आतुर कोयल डोले
वंदनवार सजायी हमने
ऋतुराज खिलाया पुष्प यहाँ
आभ बढ़ायी इंद्रधनुष ने
अरुण खिलाया धूप यहाँ
रूप दिखाने इस दुनिया में
मुग्ध परी ने कुंतल खोले
मन बंजारा व्याकुल डोले
सूख गया उर मान सरोवर
जर्जरता पीड़ा फैलायी
सब लोगों के सुख की खातिर
नारी पाथर से टकरायी
प्रीत नहीं मिल पायी साँची
गालों पर भी काजल डोले
मन बंजारा व्याकुल डोले
प्रेम बिना कैसा जन जीवन
शुचि प्यार कहाँ मनुहार बिना
धूँम नहीं होती आँगन में
कब भोग बनें त्यौहार बिना
क्रंदन करता मन वृंदावन
मीत यहाँ पर आकुल डोले
मन बंजारा व्याकुल डोले
-डॉ उमेश कुमार राठी