चातक ने जब आवाहन कर,
छेड़ा सरगम स्वर मल्हार का।
मेघों ने सन्देश सुनाया ,
पावस की पहली फुहार का।।
काले, भूरे बादल गरजे,
चपला चम चम चमक बड़ी है।
रिमझिम-रिमझिम बूँदाबारी,
ऋतु पावस की द्वार खड़ी है।।
हलधर के अंतस् मुस्काते,
स्वागत करते जलद धार का।
सूरज के विकराल कोप को,
कुछ पल में ही शांत कर दिया।
धरती का आँचल सहलाकर
उसमें धानी रंग भर दिया।।
नीलगगन हो रहा विमोहित,
देख दृश्य अद्भुत निखार का।
लू का अहम चूर कर डाला,
शीतल मंद बयार बहा दी।
मोर नाचने लगे मुदित मन,
कोयल ने सुर-ताल मिला दी।।
खग-मृग,वन-उपवन को लगता,
मौसम आया है बहार का।
सौंधी-सौंधी माटी महकी,
तरुवर झूम रहे मस्ती में।
वातावरण बना उत्सव का,
गली-मुहल्ले हर बस्ती में।।
गूँज रहा दादुर-झींगुर-स्वर,
दिग्दिगंत ज्यों ओमकार का।
विरहन का दिल बैठा जाए,
चपला चितवन खूब डराए।
शीतल बूँद लगे अंगारा,
रह-रह कर तन-बदन जलाए।।
हाल बुरा विरहिन का लगता,
टूटा दर्पण अलंकार का।
-स्नेहलता नीर