मुझसे दूर-दूर था ख़ुद में ही मगरूर था
कह दो मेरे दिलबर मेरा क्या कसूर था
ग़ैर कर दिया तूने अपना बनाकर मुझे
ख़ता मेरी नहीं थी तू ही मद में चूर था
हालत देखो अपनी हालात भी देखो
हम दोनों में इक दूजे से ही तो नूर था
तू बहकता था पल में खुशबू से मेरी
मेरे तन मन पर हर पल तेरा सुरूर था
मैं ख़ुशी तेरी प्यार अरु एहसास थी
तू ही सदा से ओ सखे मेरा गुरूर था
-अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ