बात उस समय की जब मैं 8- 10 साल की थी ।बच्ची के कदम बड़ी बच्ची बनने की और चल पड़े थे घर और दुनिया को समझने की बाल मन तैयारी कर रहा था जो बड़े कहते उसे मानना एक अच्छी बच्ची बनना पहला मकसद भी यही था। फिर भी हर व्यक्ति विशेष का अपना एक अलग नज़रिया होता है और एक बड़ी होती बच्ची भी बड़ों की बात मानते हुए साथ ही साथ एक अपनी अलग सोच विचारों का ताना-बाना बनाती है और इस तरह एक व्यक्तित्व बनता है जो अपने परिवार के संस्कार के साथ एक विशेषता भी लिए होता है और मैं उसी रास्ते के मुहाने पर खड़ी हो रही थी।
हमारे पिताजी नौकरी करते थे वहां सभी ऑफिसरों के लिए क्लब होता था। हर त्योहार समारोह आदि पर सारे लोगों को क्लब में इकट्ठा होना होता था। अकेले तो शायद ही कोई कुछ उत्सव मनाता था ।नए साल की तैयारी भी स्वाभाविक तौर पर वहीं होनी थी। महीने भर से तैयारी चल रही थी। कोई नाच की तैयारी कर रहा था और कोई गाने की, तरह-तरह के पार्टी गेम जो उस होने वाले थे उस पर भी चर्चा चल रही थी औरतों और बच्चों के बीच फैशन और कपड़ों को लेकर विशेष चर्चा हो रही थी तो मर्दों के बीच खाने पीने को लेकर चर्चा हो रही थी।
फिर आया 31 दिसंबर का दिन, शाम के इंतजार में और उत्सव की आखिरी तैयारी में सभी लोग लग गए। देखते -देखते क्लब पहुंचने का टाइम हो गया । हम बड़े उमंगों से अपने-अपने फैशन कपड़े और नाच गानों की तैयारी पर इतराते क्लब की और चल पड़े। रास्ते में अड़ोसी-पड़ोसी साथ मिलते गए। हंसी ठहाकों के साथ काफ़िला क्लब की ओर चल पड़ा। उसी समय एक अंकल ने मुझसे कहा कि तुमने एक अलग ड्रेस पहना है। जीन्स पैंट वाह क्या बात है, पर बेटा आप इतना ज्यादा दुबली हो कि आप पर यह ड्रेस अच्छा नहीं लग रहा। मैं बड़ी मायूस हो गई। उदासीन होकर मैं पूरे आयोजन में बेमन से दोस्तों के साथ रही। तभी ग्यारह बचते हीं मंच से कहा गया कि तैयार हो जाएं घंटे भर में हम नए साल का स्वागत करने वाले हैं। रोशनी धीरे-धीरे मध्यम होगी और कुछ सेकंड के लिए अंधेरा हो जाएगा। अचानक तेज रोशनी और संगीत के साथ नए साल का स्वागत होगा। यह सुनते ही लोग अपने-अपने प्रिय को तलाशने लगे। नये साल की शुरुआत में हाथ पकड़ लेना हैं क्योंकि सबसे पहले नए साल की मुबारकबाद देनी है ।मैंने भी सोचा मेरा प्रिय तो बस मेरा परिवार है। जो मुझे प्यार करता है। जो लोग मुझे मायूस करते हैं वह तो हो नहीं सकते ।मैं अपने भाई को ढूंढने लगी उसे अपने साथ लिया और पिताजी के साथ लिया फिर मां को साथ लिया सब एक साथ खड़े हो गए । नया साल आ गया ।हमारे हाथ एक दूसरे के हाथों में थे और मैं बेहद खुश थी कि अब यह हाथ कभी नहीं छूटेगा क्योंकि कहते हैं नये साल की शुरुआत में किया गया अच्छा कार्य पूरे साल अच्छा रहता है। नया साल शुरू होने को है तो आने वाला साल बेहतर हो उसकी तैयारी अब शुरू कर देनी चाहिए नए साल के प्रथम पल को ख़ुशियों से भर देना है, जिससे पूरे साल ख़ुशियों भरी आशा हम अपने मन में संजो लें नए साल की शुभकामनाएं…
-रश्मि किरण
(सौजन्य:- साहित्य किरण मंच)