याद आये वो मधुर पल
जो लहू में घुल गये
याद के पन्ने अचानक
उर पटल पर खुल गये
ताप श्रापित वेदना से
जन्य तन का स्वेद है
भावना का चेतना से
मानसिक मतभेद है
आँसुओं की धार में सब
दाग दिल के धुल गये
याद के पन्ने अचानक
उर पटल पर खुल गये
सिंधु तेरे तल अतल में
रत्न अब भी शेष हैं
शंख माणिक और
मुक्ता के बचे अवशेष हैं
लोभ की कुंठित तुला पर
रत्न सारे तुल गये
याद के पन्ने अचानक
उर पटल पर खुल गये
जोड़ करके धन असीमित
मोह का पाया सिला
भर लिया वैभव अपरिमित
पर मिला केवल गिला
मृत्यु रूपी पालकी में
मीत सब आकुल गये
याद के पन्ने अचानक
उर पटल पर खुल गये
-डॉ उमेश कुमार राठी