याद आ रहे हैं चॉकलेट के तमाम रैपर
जो बचपन में हम खाते थे
और सहेज कर रखा करते थे
सपने थे कि एक दिन बड़े होकर
दूर पहाड़ियों के बीच
एक अपना भी
चॉकलेट का बना घर होगा
शायद अब भी मासूम पलकों पर
यह सपना पलता होगा
पर पता है न हकीक़त की गर्मी
चॉकलेट पिघला देती है
याद आ रही है सर्दियों की धूप
जब होती थीं
सतरंगी सपनों से मुलाक़ातें गुपचुप
याद आ रहे हैं सारे पल
वह आंगन में छतरी जोड़कर
चद्दरों से ढक घर बनाकर खेलना
याद आ रहे हैं खेल खेल में
बड़ों के कामों की नकल करना
याद आ रहे हैं तब थी
जल्दी से बड़े हो कर
अनगिनत सपनों को
हकीक़त कर लेने की ख्वाहिशें
लेकिन पता ना था
टूटे सपनों की सीढ़ियों पर से होकर
बड़े होने का रास्ता जाता है
-रश्मि किरण