ये ज़िन्दगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमें चलना पड़ता है
जब जब गिराए कोई उठकर तब तब सम्भलना पड़ता है
बिखेरने को खड़ा है ज़माना तोड़ने को हैं सभी
टूटकर फिर से जो चमके उस हीरे सा निखरना पड़ता है
ये ज़िन्दगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमें चलना पड़ता है
लहरों से ना तू डर अब ग़र समंदर में है तू उतर गया
लहरों को चीर कर ही तो नौका को आगे निकलना पड़ता है
मुश्किलों से ना तू डर ना हार मान उनसे कभी
मुश्किलें हैं सीढियों सी पाने को मंजिल कई सीढ़ियां चढ़ना पड़ता है
ये ज़िन्दगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमें चलना पड़ता है
आशिकी में ना तू पड ना इश्क़ को मंजिल बना
है दूर तक जाना तुझे बस हौले हौले चलता जा
कुछ पाने के लिए थोड़ा परिश्रम तो करना पड़ता है
सफ़र-ए-हयात बनाने को हसीन हालातों से भी लड़ना पड़ता है
ये ज़िन्दगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमें चलना पड़ता है
मंजिल तेरी तू खुद बना ज़माने से क्या है पूछता
हमसफर तू खुद का बन राहों में अकेले चलना पड़ता है
यूँ ही नहीं पहुँच जाता कोई ऊंचे ऊंचे मुक़ामों पर
सपनों की जमीं पर चलने के लिए कई मर्तबा फिसलना पड़ता है
ये ज़िन्दगी है कुछ यूँ कुछ इस तरह इसमें चलना पड़ता है
-अनुभव मिश्रा