सच के पाँव नही होते
राह की दरकार नहीं होती
ना ही पत्थरों का डर कोई
लेकिन होता है वजन जिसमे
और कर देता है हल्का हमे
क्योंकि सच के होते हैं पंख
हर दिशा में चल लेता है जो
तय कर लेता है कोई भी दूरी
पहुँच जाता है सुराखों से भीतर
तो लगा आता है डुबकी कहीं भी
और तैर कर पार लग जाता तभी
झूठ की काया नहीं होती
ना ही होता है उजलापन
स्याह रंगत में रंगी
मटमैली फितरत में ढकी
धुंध होती है जिसकी तासीर
धुआं होती हैं बातें जिसकी
कहीं छाया नहीं पड़ती जिसकी
ना ही छूटती है उसकी छाप कहीं
होता है उसमे उथलापन जभी
जो ठहरने नहीं देता उसको कहीं
उखड़े रहते हैं पांव तभी
-शिप्रा खरे शुक्ला
परिचय-
नाम- शिप्रा खरे शुक्ला
शिक्षा- एमएससी, एमए, बीएड, एमबीए
विशेष- संगीत गायन में प्रभाकर, आईजीडी बाम्बे
सम्प्रति-अध्यापन, स्वतंत्र लेखन, सामाजिक कार्य
रुचि- लेखन,पठन-पाठन और संगीत
पता-
पश्चिमी दीक्षिताना, गोला गोकरण नाथ,
जिला- खीरी, उप्र- 262802
ईमेल- [email protected]
ब्लॉग-कस्तूरीमृग shipradkhare.blogspot.com