अगर यही है जिन्दगी तो
हाँ हम जी रहे है।
कुछ दर्द अनकहे है
बाँट भी न पाएँ
रिश्तों के नाखून चुभ रहें हैं
हम काट भी न पाएँ
हर वक्त बेबसी का
बस घूँट पी रहें है।
अगर यही है जिन्दगी तो
हाँ हम जी रहे है।
मजबूरीयों ने जैसे
मेरे पाँव बाँध डाले
कुछ लोग मिल गए हैं
बेहद ही मन के काले
रिश्तों की दुहाई देकर
खुद के जख्म सी रहे हैं
अगर यही है जिन्दगी तो
हाँ हम जी रहे है।
एक मन है मेरा पागल
खोता है अपना आपा
तमाशबीन है ये दुनिया
ढूँढती है नया स्यापा
इन आँसूओं की वजह
कुछ अपने भी रहें हैं।
अगर यही है जिन्दगी तो
हाँ हम जी रहे है।
-रुचि शाही