रँगों की ख़ुमारी फ़िर से छाई है
रँगीली होली फ़िर से आयी है
मौसम ने ली अँगड़ाई है
मदमस्त पवन लहरायी है
शीत ऋतु की हुई बिदाई,
और गर्मी की रुत है आयी
फ़िर एक बार प्रह्लाद की स्मृति दिलाई है
बुरायी पर अच्छाई को जीत दिलायी है
किमाम सी चटक, जाफ़रानी सी खुशबू
सुर्ख रँगत से धरती मुस्काई है
मार पिचकारी भिगो कर चोली
आशिक़ ने फिर बाँहें फैलाई हैं
ठुमके ग्वाले तक-धिनक-दिन
ब्रजवासिनों ने चूड़ी खनकायी है
गुझिया, बर्फी, मठरी से हैं सज गए थाल,
ढोल नगाड़ों से गलियाँ सजाई हैं
अबीर, गुलाल, कुमकुम का घूँघट
ओढ़ के वसुधा देखो कैसी शर्मायी है?
दम्भ,द्वेष का कर के त्याग
जिसको चाहो बना लो अपना आज
यही इक बात हमें समझायी है
होली आयी है, होली आयी है
-सीमा कपूर चोपड़ा