आज मौत मुहाने पर खड़ी है
जिंदगी, जीने की ज़िद पर अड़ी है
दुश्मन फैला है चारो तरफ हवाओं में
जहर घुल गया है वतन की फिजाओं में
दुनिया आज पिंजरे में पड़ी है
आज अदृश्य शत्रु हमें ललकार रहा है
बाहर बुला रहा है, अपने पैर पसार रहा है
घर के भीतर रहें, चूंकि परीक्षा की घड़ी है
हर युद्ध नहीं जीते जाते सामने होकर
कुछ जंग हमने दिमाग से भी लड़ी है
समय तो समय ही है, बीत ही जाना है
आज करोना का है, कल हमारा भी आना है
इक्कीस दिन बाहर जाने की क्या पड़ी है
-शालू राजपूत