आओ मिलकर हम-तुम,
आज ये एक फैसला लेते हैं
प्यार छोड़ देते हैं और इस बार
नफ़रत को रख लेते हैं,
गुनहगार तो हम दोनों ही
बराबर के हैं चलो आओ
एक-दूजे की सलामती के लिए,
हम रोजा रख लेते हैं,
पास रहकर भी एक-दूसरे को
अपना ना कह पाए,
तो आओ अब दूरियों का भी
मज़ा चख लेते हैं,
ये अहम ही था जो
हमारे रिश्ते में दरार बन गया,
वरना बातें तो हम दोनों ही,
अच्छी कर लेते हैं
पेड़ काटकर घर बनाने का,
रिवाज़ ज़माने में है ‘खुरपाल’
हम घर काटकर पेड़ लगाने का
रिवाज़ बना लेते हैं
निशांत खुरपाल ‘काबिल’
अध्यापक
कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल
पठानकोट