माना कि साथ चल न सका कारवां के
लेकिन ये मत समझ की मेरे पाँव थक गये
दिलकश मकाम राह में मिलते रहे मगर
जारी रखा सफर न किसी तौर हम रुके
मारा है किसने पीठ में खंजर नहीं पता
सब दोस्त कह रहे हैं कि ऐ दोस्त हम न थे
हैरान हैं वो कैसे सफर मैंने तय किया
राहों में मेरी खार जिन्होंने बिछाए थे
आसां नहीं है राहे वफ़ा आजकल नितान्त
हम खूब जानते थे मगर फिर भी चल पड़े
समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज, उत्तर प्रदेश