क्या हुआ जनाब क्यों उखड़े हो
नाज़नीन हो,गुलाब से मुखड़े हो
कोई शिकवा है तो कहो मुझसे
यों मुँह ना बनाओ ज्यों दुखड़े हो
आपका आना तो बारिश सा है
उस पर चटख़ धूप के टुकड़े हो
कोई बात है आज हँसें नहीं तुम
किस वजय से सुकड़े-सुकड़े हो
‘उड़ता’ कुछ हुआ जो उखड़े हो
वर्ना तो तुम गुलाब से मुखड़े हो
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा- 124103
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