पुस्तक समीक्षा: फिर लौटेंगी स्त्रियाँ

फिर लौटेंगी स्त्रियाँ डॉ वंदना गुप्ता के एकल काव्य संग्रह का नाम है। जिसमें उन्होंने स्त्रियों के प्रति समाज की मनोदशा, एक स्त्री जो न जाने कितनी परिस्थतियों से जूझती हुई अपने जीवन को जीती है, के जीवन संघर्ष को बखूबी उकेरा है।

डॉ वंदना गुप्ता की कविताओं में एक स्त्री के जीवन का सम्पूर्ण संघर्ष, उसके सुख-दुख, दर्द की कराहटें, प्रेम की ख़ातिर उसके समर्पण के चित्रण के साथ ही स्त्री के प्रति पुरुषों की मानसिकता को बारीकी से अभिव्यक्त किया गया है।

डॉ वंदना गुप्ता की कविताओं से ये बात निकल कर आती है कि समाज में स्त्री का क्या ओहदा है? आज भी अगर एक स्त्री के साथ कुछ गलत होता है तो ये समाज स्त्री को ही गलत नज़रिए से देखता है। कभी स्त्री को समर्थन नहीं देता।

फिर लौटेंगी स्त्रियाँ काव्य संग्रह का सार ये है कि स्त्रियों को अपनी सामर्थ्य अपनी सीमाओं को खुद तय करना होगा। अपना खोया हुआ सम्मान हक़ से लेना होगा। आज की स्त्री पुरुष से किसी भी मापदंड से कमतर नहीं आंकी जा सकती। हर क्षेत्र में स्त्री अपना सम्पूर्ण योगदान दे रही है अपनी पहचान खुद बना रही है।

फिर लौटेंगी स्त्रियाँ काव्य संग्रह में छुपी स्त्रियों के मन की मौन गूँज है जो अपने हक़ की लड़ाई खुद लड़ना जानती है और आज लड़ भी रही है और तब तक लड़ती रहेगी जब तक ही उसे उसका छीना हुआ सम्मान वापस नहीं मिल जाता। आज स्त्री अपने हौसलों से अपनी सफलता का परचम हिमालय तक लहरा रही है।

अतुल पाठक ‘धैर्य’
हाथरस, उत्तर प्रदेश

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