कविता-संग्रह- खिड़की जितनी जगह
कवयित्री- वंदना मिश्रा
समीक्षक- वंदना पराशर
हाल ही में प्रकाशित कवयित्री वंदना मिश्रा का कविता-संग्रह ‘खिड़की जितनी जगह’ न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में वंदना मिश्रा समाज में, परिवार में स्त्री-व्यक्तित्व, उसकी अस्मिता और स्वतंत्रता कहां तक है? की बात कहती हैं। इस संघर्ष से गुजरते हुए स्त्रियों को किन-किन परिस्थितियों से गुजरना होता है, स्त्रियों की पीड़ा और अन्तर्द्वंदों को वंदना मिश्रा गहराई से महसूस कर अपनी कविताओं में व्यक्त करती हैं। खिड़की जितनी जगह शीर्षक कविता में वंदना मिश्रा कहती हैं- दीवारें नहीं टूटती/पर महिलाओं ने/हमेशा बना रखी है/एक खिड़की जितनी जगह/प्रेम के लिए।
बात जब परम्पराओं, रीति-रिवाजों और रिश्तों को बचाये रखने की होती है तो स्त्रियां हमेशा ही आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारी मानकर इसे संभालने की कोशिश करती हैं। इसी कविता की एक और पंक्तियां देखिए- फिर पता नहीं क्या गुप्त संधि हुई/कि खिड़की से देख नई बहू को/मां ने मुंह दिखाई दी। कहना न होगा कि स्त्रियां रिश्तों को सहेजना और संवारना जानती हैं।वह जानती हैं कि रिश्तों की डोर नाज़ुक होती है जिसे मजबूत बनाये रखने के लिए उसे सींचना होता है अपने प्रेम से।
इस संग्रह के केंद्र में मध्यम वर्गीय परिवार की स्त्रियां हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने परिवार के मान-सम्मान की चिंता में घुलती रहती हैं। वंदना मिश्रा की कविताओं में ‘घर’ का विशेष महत्व है। घर बनता है प्रेम से, विश्वास से, समर्पण से। प्रेम के बिना घर का कोई अस्तित्व नहीं होता है। मध्यम वर्गीय परिवारों में अधिकांशतः यह देखने को मिलता है। इन परिवारों की स्त्रियां अपने मान- सम्मान , अपने अस्तित्व की परवाह न करके घर की परवाह करती हैं। वह घर, जिसे वह अपने त्याग, समर्पण और प्रेम से सींचती है। यही घर किन्हीं कारणों से जब टूटने लगता है, रिश्तों में अलगाव की स्थिति आ जाती है तो स्त्री- मन वेदना से भर जाती है। ‘मां को तो आदत है रोने की’, ‘घर फोड़नी’ ‘नाचना’ जैसी कविताओं में संयुक्त परिवार के टूटने की त्रासदी दिखाई देती है। कवयित्री कहती हैं- मां को क्या पता ‘न्यूक्लियर फैमिली’ की परिभाषा/वो हर बार इस बात पर रो देती है/कि मेरा परिवार इतना छोटा कैसे हो गया?
वंदना मिश्रा की कविताओं को पढ़ते हुए (लम्बी कविताओं के बारे में) कहानी पढ़ने का आभास होता है। कविता में कहानीपन, वंदना मिश्रा की यह खासियत है जो पाठकों को उनकी कविताओं से अंत तक बांधे रखती है।’ बर्षो से यह परंपरा- सी चली आ रही है कि जब विवाह के बाद बेटी घर से विदा होने लगती है तो उन्हें अपने कुल, परिवार की मान- मर्यादा बनाए रखने के लिए तरह- तरह से उपदेश दिए जाते है। (उदारण प्रस्तुत करते हुए) ‘गृहणी पद’ कविता में वंदना मिश्रा ऐसे उपदेशप्रद बातों का खंडन करती हैं। क्या करेगी ऐसा गृहणी पद लेकर?/क्या बचा रह गया उसके/जीवन में? वंदना मिश्रा सवाल करती हैं- और कुल को चिंता क्यों नहीं करनी चाहिए/ऐसी स्त्रियों की? कवयित्री का ऐसा कहना यह सोचने पर विवश करती है कि आखिर क्यों स्त्री के कंधे से टिका दिया जाता है, परंपराओं, कुल का मान-सम्मान को ढोने का बोझ?’
चलती रहो’ शीर्षक कविता में कवयित्री कहती हैं- चलते-चलते पलट कर देखोगी/तो आगे नहीं बढ़ पाओगी/बोलते-बोलते सुनना चाहोगी/कि क्या कहते हैं लोग/तुम्हारे बोलने के विषय में/तो बंद करना होगा अपना मुंह/रुको पर अपनी मर्ज़ी से। कवयित्री यह मानती है कि स्त्रियों के लिए अपना मंज़िल पाने का रास्ता आसान नहीं है, किन्तु वे अपने आपको इतना मज़बूत बना लें कि रास्ते में आने वाले हर बाधाओं को पार कर लें अपनी दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति से।इसी कविता में आगे वह कहती हैं- करने का सिर्फ यही रास्ता है/तुम्हारे पास कि/चलती रहो/बोलती रहो।
आधुनिकता के इस दौर में जहां लोगों की संवेदनाएं छीज रही है, संबंधों में अलगाव की स्थिति पैदा हो रही है, घर-परिवार टूट रहा है, ऐसे में कवयित्री प्रेम को बचाने की बात कहती हैं। प्रेम जीवन के लिए संजीवनी बूटी की तरह है। प्रेम जीवन का वह मधुर संगीत है जिसके होने मात्र से जीवन में आनंद की सच्ची अनुभूति होती है।’ प्रेम ‘शीर्षक कविता में वंदना मिश्रा कहती हैं- पीपल का पेड़ होता है प्रेम/किसी भी जगह उग जाने वाला/किसी भी सुराग, किसी भी दरार में/फैला लेने वाला अपनी जड़ें। वंदना मिश्रा की दृष्टि में प्रेम वह है जिसमें हम ‘अनकहा’ भी सुन लेते है। ‘तुमने कहा’ शीर्षक कविता में कवयित्री ने अपनी संवेदना कुछ इस तरह से व्यक्त किया है- तुमने कहा/ जाता हूं/मैं कह न सकी/साथ चलते हैं/तुम समझ नहीं सके/मेरा अनकहा/बस, इसीलिए/साथ नहीं चल सके हम।
वंदना मिश्रा प्रेम में डूब जाने की बात तो कहती हैं किंतु आत्म सम्मान खोकर समर्पित हो जाने की बात नहीं कहती हैं। उनके लिए प्रेम अनुभूति है जिसे साथ चलने वाले भी महसूस करें। अम्मा का बक्सा, समझदारी, चना दाल की पूरियां जैसी कविताओं में कवयित्री अपने बचपन की खूबसूरत यादों को संजोए हैं। ‘खिड़की जितनी जगह’ वंदना मिश्रा का तीसरा कविता-संग्रह। इसमें कुल 76 कविताएं हैं।
सहज और सरल भाषा शैली में लिखी वंदना मिश्रा की कविताएं आम पाठकों के दिल को छू लेती है। स्त्री संवेदना के स्वर यहां मुखर है।कविता-संग्रह पठनीय है। वंदना मिश्रा को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।