नंदिता तनुजा
चंदनियां क्या सोच रही, इतनी पहर काहे परेशान हैं? “कुछ नाही दीदियां, बस मन बहुत घबरा रहा, जैसे कि कुछ गलत होवे वाला हो।”
अरें तोहरी आदत है- “तनिक-तनिक बात घंटों सोचत हो औ जो नाहीं हो वो भी, चलों जाके कमरा में सोऊँ, ऐसे छज्जा पर खड़ा सारा रात गुजरियों का?”
जा रहिन दीदियां हम ठीक है, तुम परेशान न होऊ, सोऊँ तुम भी हमउ जा रहे। फिर दोनो बहनें अपने कमरे में चली गई।
चंदनियां अलट-पलट की नींद नाही आ रही थी, औ वो मोहन के बारे में सोचत रही की दीदियां से मोहन के बारे में कैसे बताई, काहे चंदनियां भी मोहन के उतना बूझी जितना वो बताया वही दिखाया लेकिन अब तो मोहन को दीदियां से मिलाना जरूरी हो गया रहा ताकि दीदियां उसकी शादी के लिए कोई और लड़का न देखें और मोहन को पंसद कर ले।
सोचत-सोचत कब चंदनियां सो गयीं ?और सुबह भी हो गयीं रही। चंदनियां मन में ठानी रही कि आज मोहन से मिल घर लाकर दीदियां से मिला देई, क्योंकि रात भर सोई न रही।
तभी दीदियां- “चंदनियां कैसी तबियत है का भया रहा रतिया में ठीक हो?
हां दीदियां- “ठीक हूँ, मंदिरे जा रहे श्यामा के साथ औ फिर थोड़ी देर उसके घर भी जाइबे, कौनों और काम है तो बता दैई कर आइबे।”
दीदियां- “नाहीं जा मन फेर आवा, जा बिट्टू।”
श्यामा के घर चंदनियां पहुंची, तभी देखी बहुते भीड़ बा, वो भीड़ के बीच में गइल, अरे का भइल? लेकिन सब एकदूसरे के देखत रहे, और फिर सामने श्यामा और मोहन दोनों शादी कर श्यामा के घर के बाहरे खड़े रहे और मोहन चंदनियां को देखकर भी अनदेखी और कौनों अपनी करनी का पछतावा, शर्म नाही दिखा।
श्यामा के घर से चंदनियां बोझिल कदमों से लौटी रहे, कि कुछ बुरा होवे के रहल हो गइल और हम बच गइली बोझिल कदमों से घरें आकर खूब जीभर कर रुवत रहे दीदियां- का भइल चंदनियां? काहे रुवत है? दीदियां- “रात के भयावही सपनवा याद आ गइल!” चल पगली कोनों बात नाही, मनवा केवल सोचे ला, जाये दा भूल जा रात रहिल, अब भोर बा।
दीदियां- चंदनियां को गले से लगा ली, औ चंदनियां के आपन दर्दे को समाकर, जीवन में मन आंशका से बाहर निकल फरेबी दुनियां के सामने रहल।