बार-बार मत कोसिए, नकल बुद्धि का खेल
नकल करे सो पास हो, मन से लिखे सो फेल
नकल, न कल की बात है, सफल आज की उक्ति
चूक गया जो नकल से, मिले न उसको मुक्ति
बंदर से सीखो हँसी, चिड़ियों से मधु गान
मिले सर्प से दंश विधि, स्वामिभक्ति गुरु श्वान
बिन पूँजी, परमिट बिना, नकल बड़ा उद्योग
ऊँची शिक्षा में हुए, अगणित नए प्रयोग
मुन्नाभाई बन गए, सरकारी दामाद
शिक्षा, कौशल, योग्यता, बने पौष्टिक खाद
खेल न बच्चों का नकल, पूर्ण योग-अभ्यास
रट्टमरट्टा का कभी, रोग न आता पास
कवि, गायक, नेता वही, सफल मंच पर आज
नकल कला में सिद्ध ही, बचा रहा है लाज
सस्ता आकर्षक लगे, सदा नकल का माल
असल उपेक्षित रो रहा, कौन पूछता हाल
हुआ नकल से पास जो, उसके ऊँचे अंक
श्रम से कम प्रतिशत रहा, कभी न मिटा कलंक
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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