सोनल मंजू श्री ओमर
राजकोट, गुजरात-360007
फूल नहीं, पंखुड़ी बनकर रहना है
पानी नहीं. बूंद बनकर रहना है
नही बहना किसी के आँख से आँसू बन,
बन सकूँ तो होठों पर मुस्कान बनकर रहना है
नहीं चाहिए मतलब से भरे रिश्ते,
मुझे तो बस निस्वार्थ संबंधों के बीच में रहना है
मैं कहाँ चाहती हूँ सागर की लहरों सा बन बहना
मुझे तो मेरे अपनों से भरे आसमाँ में उड़ते रहना है
नहीं बनना किसी का दुश्मन या दिल की फांस,
मुझे तो सिर्फ दोस्त बनकर दोस्तों के साथ रहना है