सफलता की खोज में गाँव से,
निकल पड़े थे शहर को।
दो रोटियां भी कठिनाई से कमाई,
आराम भी न एक पहर को।
जब जीना मुश्किल हो जाता है।
तब गाँव हमें अपनाता है।।
गाँव के सरसों, अरहर के खेत,
और वो आमों की अमराई।
बाग में बैठ गौरैया गाये,
कुहुकती कोयल थी बौराई।
ये शहरों में कहाँ मिल पाता है।
तब गाँव बहुत याद आता है।।
शहर का सूना सा सन्नाटा,
हृदय में पसर जाता है।
कोई काँटा बीते सुखद क्षणों का,
मन में चुभ जाता है।
जब संदेशा कोई गाँव से आता है।
तब गाँव हमें मिल जाता है।।
गाँव की ओर फिर रूख किया,
जब शहर में बढ़ गयी पीर।
रिक्त पड़ी थी क्षुधा अपनों की,
और भरे थे दृग कोर में नीर।
जब कोई सहारा नहीं रह जाता है।
तब प्रवासी गाँव लौट आता है।।
सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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