Sunday, November 17, 2024
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गांव का घर: कृष्ण गोपाल सोलंकी

भाईचारा, प्रेम निजता का तराना छोड़कर
कर रहे हैं सब सियासत दोस्ताना छोड़कर

घोटती है दम बेशक़ शहर की आबोहवा,
ख़ुश बहुत हैं लोग गाँव का घर पुराना छोड़कर

प्यार रिश्तों में बढ़ाने का तरीका एक है,
विश्वास करना सीख लो तुम आजमाना छोड़कर

लाड़ करने लग रहे हैं लोग कुत्तों से यहाँ,
भूल कर के रोज चिड़ियों का चुगाना छोड़कर

जब अँधेरों में चला ‘गोपाल’ तो कहने लगे,
जा रहा है रोशनी को इक दीवाना छोड़कर

कृष्ण गोपाल सोलंकी

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