दर्पण को झुठलाए कौन
उलझन को सुलझाए कौन
हवा बहुत दुःखदायी है
लोरी गा, बहलाए कौन
भौरों को डर लगता है
तितली से इठलाए कौन
पत्थर से टकराया मैं
चोट लगी, सहलाए कौन
मरुथल में हूँ, धूप कड़ी
सघन छाँव तक लाए कौन
बहुत सताते हिंसक पशु
साधु-संत कहलाए कौन
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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