सबके घरों को जोड़ने में बीतती जिसकी उमर
वो कर रहा टूटे घरों में ज़िंदगी अपनी बसर
इस वक्त के आगे सभी ही सिर झुकाए हैं खड़े
बेकार सुख-साधन हुए खबरों पे है सबकी नज़र
ऐसा नहीं कुछ जो न बदले बदल न ही ज़िंदगी
मुड़ के नहीं है देखना जीवन समंदर की लहर
जिसके उगाए अन्न से है पल रहा सारा जहाँ
उस पर ही आख़िर भूख क्यों ढाती ही रहती है कहर
तस्वीर बन लटका हुआ मन में हमारा गाँव है
अब हैं न बूढ़े पेड़ ना पोखर नहीं वैसी डगर
अंजना वर्मा
बेंगलुरु
परिचय
अंजना वर्मा की विविध विधाओं में 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें पांच कविता-संग्रह, तीन कहानी संग्रह, दो गीत संग्रह, दो आलोचना पुस्तकें , एक-एक दोहा, लोरी एवं वंदना-संग्रह, एक यात्रावृत्त सहित तीन बालगीत और एक बालकथा संग्रह शामिल हैं।
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के अंतर्गत नीतीश्वर महाविद्यालय, मुज़फ्फरपुर में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहते हुए इन्होंने लंबे समय तक अध्यापन किया तथा पाँच वर्षों तक चौराहा नामक अर्धवार्षिक पत्रिका का संपादन एवं प्रकाशन भी किया। इन्हें अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। संप्रति बेंगलुरु में निवास।