ये जो इन्तजार है साहिब
बस यही तो प्यार है साहिब
पास आये या दूर जाये अब
ये कहाँ इख्तियार है साहिब
इबादत में नज़र झुका दी है
करम उनका उधार है साहिब
बुत को मैंने खुदा बना डाला
इक पत्थर से प्यार है साहिब
उनके सांसों की इनायत में ही
अब ज़िन्दगी की बहार है साहिब
डाॅ किरण मिश्रा स्वयंसिद्धा
नोयडा