ये बादल तो
प्रकृति का सौगात
जीवन कूल
बादल है या
इश्क़ की पेचीदगी
मन व्याकुल
बादल है या
बारिशों का समुंद्र
सावन झूमे
जब छाये ये
तब मालूम होता
इश्क़े उन्माद
छंट जाये ये
तब मालूम हेता
सूना आकाश
बरस जाए
मन तृप्त हो जाए
जैसे अमृत
-मनोज शाह ‘मानस’
नई दिल्ली